Thursday, February 24, 2011

महंगाई का भस्मासुर

महंगाई आम आदमी से लेकर संप्रंग सरकार तक के लिए गले की हड्डी बन चुका है. महंगाई अब इस स्तर पर पहुंच चुकी है जहां से एक औसत भारतीय सीमित बजट में घर चलाने के लिए काफी मगजमारी करनी पड़ रही है. इतनी मगजममारी अगर प्रणब मुखर्जी या षरद पवार ने महंगाई नियंत्रण में की होती तो आम जनता इतनी बेहाल नहीं होती. सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि इसे नियंत्रित करने के लिए आखिर क्या किया जा रहा है. केन्द्र सरकार राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है. अर्थषास्त्री आपूर्ति में समस्या को वजह बता रहे हैं. उनके पास मांग-आपूर्ति के थोथे तर्क के अलावा कुछ भी कहने को बचा नहीं है. राजनेता एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. चैनल हल्ला मचा रहे हैं. लेकिन समस्या की तह तक कोई नहीं पहुंच रहा है.
मेरा मानना है कि कीमतों में बढ़ोतरी का आपूर्ति से कोई लेना-देना नहीं है. मसलन दाल का ही उदाहरण लीजिए. 2008 में दाल का उत्पाद 147.6 लाख टन था और यह 2009 में घटकर 146.8 लाख टन हो गया. इसका मतलब यह हुआ कि उत्पादन में महज 80 हजार टन की कमी हुई. मोटे तौर पर हम यह कह सकते हैं कि उत्पादन में अत्यंत मामूली कमी देखने को मिली है. कुछ जानकारों का मानना है कि दालों की मांग देष में 170 लाख टन है. हमने 2009 में 25 लाख टन दाल आयात कर मांग-आपूर्ति के अंतर को पाट दिया. इसके बाद भी कीमतों में बढ़ोतरी जारी रही. इसका मतलब यह हुआ कि असली वजह कुछ और ही है.
आज सोचने की बात यह है कि प्याज की कीमतों को लेकर इतना हो-हल्ला हो रहा है. अगर सरकार को पहले से यह मालूम था कि बारिष से प्याज का उत्पादन प्रभावित हुआ है तो पहले ही फौरी कार्रवाई करते हुए निर्यात पर रोक लगानी चाहिए थी. लेकिन निर्यात जारी रखा गया. दूसरी बात यह कि प्याज में जमाखोरी मुमकिन नहीं है क्योंकि इसे कोल्ड-स्टोर में लंबे वक्त तक नहीं रखा जा सकता. यह तीन-चार दिन में ही खराब होने लगता है. अगर बाहर ठेलेवाले या पटरी वाले 80 रूपये प्रतिकिलो बेच रहे हैं तो मंडी में यह 30 रूपये में उपलब्ध है. जाहिर है खुदरा विक्रेता मनमानी कर रहे हैं. वे बेलगाम हैं. एक और बात सोचने वाली बात है कि दिल्ली की आजादपुर मंडी ओर नासिक की प्याज मंडी में एक ही दर पर प्याज कैसे बिक सकता है? सुपर मार्केट और ख्ुाले बाजार की कीमतों में कोई अंतर नहीं है. जबकि उन्होंने कम कीमत पर सब्जी और फल उपलब्ध कराने के बड़े सब्जबाग दिखाए थे.
पहले निर्यात की खुली छूट देने के बाद पाकिस्तान से चीनी और प्याज का बार-बार आयात काना भी समझ से परे है. इस बात की जांच की जानी चाहिए. हमें इस बात पर षर्म आनी चाहिए कि हम प्याज के खातिर देष का सम्मान भी गिरवी रखने को तैयार हो जाते हैं. पाकिस्तान से आयात करने का मतलब ही है दुष्मन को मजबूत करना. इसका खराब असर आखिरकार हम पर ही पड़ेगा.
सरकार को बड़ी रीटेल कंपनियों को दाम में सीधे 20 फीसदी की कटौती करने का आदेष देना चाहिए. इससे खुले बाजार पर भी दबाव पड़ेगा और वे दाम कम करने को बाध्य होंगे. इसके अलावा थोक मंडियों में कुछ चुनिंदा लोगों को ही लाईसेंस मिले हुए हैं ओर वे कीमत में कृत्रिम उतार-चढ़ाव पैदा करते हैं. क्यों नहीं सरकार ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाईसेंस देती है ताकि आढ़तियों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा हो. रीटेल कंपनियां 300 से 400 प्रतिषत तक मुनाफा कमाने में लगी हुई हैं. इस पर नियंत्रण आवष्यक है. वायदा कारोबार पर भी रोक लगाया जाना चाहिए. यह सट्टेबाजी प्रोत्साहित करता है.
उधर विपक्ष इसे राजनीतिक मुद््दा बनाका सियासी फायदा उठाने की सेाच रहा है. उसे भी वास्तव में महंगाई कम करने की कोई फिक्र नहीं है. आखिरकार वायदा कारोबार को अनुमति तो राजग सरकार में दी गई थी. इस बात को राजग कैसे झुठला सकता है. संसद ठप्प करने से तो दाम कम होने से रहे.

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