Sunday, March 20, 2011

कांगे्रसी टाईप के बजट से आम आदमी का कल्याण नहीं

मैं आपको पहले ही साफ कर देना चाहता हूं कि मैं कोई अर्थषास्त्री नहीं हूं मैं एक आम आदमी हूं और समाजवादी पार्टी के नेशनल सेक्रेटरी बनने के बाद से मेरी जनता के प्रति जिम्मेदारियां काफी बढ़ गई हैं. अभी हाल ही में अपने गृह-जिले बलिया में एक रैली में गया था. राजनेता के तौर पर आम आदमी से जुड़ने का मौका मिला. उसी दौरान नेशनल मीडिया में बजट-2011 की हलचल चल रही थी.

इसमें कोई शक नहीं कि देश के सामने इस वक्त गंभीर चुनौतियां हैं. मध्य-पूर्व का संकट जिस तरह से बढ़ रहा है और वहां अस्थिरता का माहौल है उसके बाद से कच्चे-तेल की कीमतें लगातार बढ़ रही है. ऐसे में देश के विकास को ब्रेक लगने का भय गहरा रहा है. तेल की कीमत किस तरह से हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती हैं यह बताने की आवष्यकता नहीं है. हम आवष्यकता का 70 फीसदी तेल अब भी आयात करते हैं. ऐसे में अगर तेल की कीमत 100 डाॅलर से पार करती है तो तेल आयात बिल में बेलगाम बढ़ोतरी होगी और बजट-घाटा बढ़ेगा ही.

सरकारी घाटा लगातार बढ़ रहा है. विनिवेश का कार्यक्रम ठप्प है. डेढ़ लाख करोड़ रूपये की सबसिडी दिए जाने के बाद भी गरीबों को ढेला नहीं मिलता. काले-धन और करप्शन पर भी जमकर हो-हल्ला हो रहा है.
ऐसे में प्रणब बाबू जैसे सक्षम और अनुभवी वित्त-मंत्री से काफी उम्मीदें थी. लेकिन मैं निराश हूं. वित्त-मंत्री ने बिलकुल कांग्रेसी टाईप बजट पेष किया है. समस्याओं से पार पाने और नया विकल्प पेश करने का विजन इस बजट में कहीं भी नहीं दिखता. उम्मीद थी कि प्रणब बाबू महंगाई से पार पाने के लिए ठोस योजना प्रस्तुत करेंगे लेकिन यह उम्मीद एकदम बेमानी साबित हुई है.

आने वाले समय में खाद्य-संकट को देखते हुए हर देश खाद्यान्न-नीति बनाने पर जोर दे रहा है. लेकिन इस तरह की कोई नीति या उसकी झलक इस बजट में मुझे तो कम से कम नहीं दिखी. सारा देश दूसरे हरित-क्रांति की उम्मीद लगाए बैठा है. लेकिन प्रणबदा ने इतिहास बनाने का मौका गंवा दिया. कुछेक कास्मेटिक घोषणाओं को छोड़कर ख्ती के लिए कोई ईमानदार प्रयास नहीं दिखा. यह ठीक है कि खेती के लिए एक लाख करोड़ रूपये का कर्ज देने की घोषणा की. लेकिन इससे गरीब किसानों का क्या फायदा होगा यह तो प्रणब बाबू ही बेहतर बता सकते हैं. कर्ज माफी का फायदा बड़े किसान हड़प कर गए और गरीब किसानों को उसका फायदा नहीं मिला. सिंचाई की सुविधा के विस्तार के लिए कोई योजना बजट में नहीं है. बेहतर खेती के लिए वित्त-मंत्री अब भी इन्द्र देव से प्रार्थना करते नजर आते हैं. अगर इन्द्र देवता ही समस्या दूर कर सकते हैं तो सरकार की क्या आवष्यकता है.
अब आते हैं महंगाई के मुद्दे पर. वित्त-मंत्री से उम्मीद थी कि कर में छूट देकर आम आदमी को राहत देंगे. कर में छूट मिला भी लेकिन इसका सांकेतिक महत्व ही ज्यादा है. इससे आम आदमी के बटुए में कितना ज्यादा पैसा आएगा वह प्रणब बाबू ही बेहतर बता सकते हैं.

सबसे हास्यास्पद प्रस्ताव तो सुपर सीनियर सिटीजेन श्रेणी बनाने का है. 80 साल से उपर के उम्र वाले लोगों के लिए 5 लाख रूपये तक की आय को करमुक्त कर दिया गया है. सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि जब देश की औसत आयु ही 64 साल है और 17 फीसदी आबादी 45 साल की उम्र में ही चल बसती है और 80 साल की उम्र तक षायद ही कोई जीवित रह पाता है तो ऐसे में उनके इस प्रस्ताव का फायदा कौन उठाएगा यह लाख टके का सवाल है.
हैरानी की बात तो यह है कि स्वास्थ्य पर जीडीपी का महज 0.5 फीसदी ही खर्च है. पहले माननीय वित्तमंत्री को यह स्वास्थ्य सुविधा बेहतर करने की कोषिष करनी चाहिए थी ताकि लोग कम से कम 80 से 90 साल तक तो जीवित रहे और उसके बाद कर में छूट मिलती तो मजा आ जाता. लेकिन स्वास्थ्य-सुविधाओं की हालत तो यह है कि सरकारी अस्पताल में सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ देते हैं और निजी अस्पताल में बिल वहन करने लायक पैसा उनके पास नहीं होता इसलिए दम तोड़ देते हैं. ऐसे में उनके इस कर में छूट का लाभ कौन उठाएगा यह तो वही बेहतर बता सकते हैं. बजट निराशाजनक है और आम आदमी इससे पूरी तरह से निराश
है.
........................लेखक समाजवादी पार्टी के नेशनल सेक्रेटरी हैं

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