Sunday, October 2, 2011

REPORT ON MEMORANDUM OF UNDERSTANDING ENTERED IN TO WITH KAMPALA UNIVERSITY (UGANDA)

A delegation led by Dr. Rajeev Rai, Chairman AVK Group Of Institutions visited Kampala Uganda in the month of February this year on the invitation of Vice Chancellor, Kampala University Uganda , Prof Badru Kateregga. The delegation identified the areas of cooperation between the two Institutions for Higher Learning in various fields of education. The delegation entered in to a Memorandum of Understanding with the Kampala University pursuant to the high level cooperation between the two Governments. The memorandum of understanding identified the areas of developing cooperation in the field of higher education.



It was agreed that on the basis of equality and reciprocity collaborative activities in the academic areas of mutual interest will be undertaken in future. The fields of cooperation would be research, higher learning for faculty development, teaching for students and joint academic publications. For this AVK Group of Institutions agreed in principal to provide training at its various campuses to staff and students of the university at its campuses located at Bangalore. The unique feature of the MOU being that the AVK group will design a customised educational and training programme for various educational Institutions operating in Uganda.

As a follow up measure of this MOU a one man delegation represented by Dr. Ronald Semyallo visited the group on 19th of Sept 2011 on behalf of the Kampala University School of Nursing. A meeting was addressed by Dr. Rajeev Rai and the areas of cooperation were identified for Tutor lecturer exchange programme. Upgradation of education of Nursing students on completion of their education at Kampala. Capacity building of the faculty. Providing of inputs in the field of executive Management programmes.




A group of officials under the leadership of Dr. Rajeev Rai comprising of Mr. PN Nagri, Director Administration and Finance, Dr. P. Subramanian, Director Management Courses and Ms. Eben Bhaskaran, Director Nursing AVK Group discussed the finer points of cooperation as per the MOU. As per the decisions arrived the AVK Group of Institutions will customise the programmes for Development and training of the Faculty of Kampala university school of Nursing. Dr. semyalo showed keen interest in the area of management education also. He was particularly thankful to Dr. Rajeev Rai for initiatives to develop the education and possibilities of training for the faculty and students of Uganda and neighbouring Afarican countries.

AVK Group under the able guidance and leadership of Dr. Rajeev Rai looks to a future as full of possibilities and cooperation between nations globally in the field of Higher education.

Japan visit as a member of INDIA JAPAN GLOBAL PARTNERSHIP SUMMIT 2011

Dr. Rajeev Rai, Chairman, AVK Group Of Institutions Bangalore, participated in India Japan Global partnership Summit (IJGPS-2011).The summit was held on 5th, 6th and 7th of September at Tokyo, Japan. The summit was attended by Dr. Rajeev Rai on the invitation of India Centre. The summit was lead by Dr. Sam Pitroda, Advisor to The Prime Minister Of India and was attended by Industry Leaders like, Mr. Mukesh Ambani, Chairman and MD Reliance Industries, Mr. Rajesh V Shah, Co- Chairman and MD , Mukund Ltd. Besides this the leaders from Industry, Infrastructure, Education and business also attended the summit.
The summit was aimed at a better understanding between the two great nations of the world and to bring together leaders, entrepreneurs, innovators, business leaders and policy makers. The intention being to draw a micro road map for the macro vision already existing in the form of India Japan Global Partnership.
The summit served as a platform for both the nations to create new vision and to address new challenges for peace, stability and growth. Focus being on creating sustainable energy efficient and environmentally responsible models. It was also aimed at bonding further the socio cultural, educational and spiritual ties between the two nations to enhance the level of understanding for closer and deeper cooperation.
The summit was organized by India Center and was attended by the former Prime Ministers of Japan along with a high level delegation supported by the Governments of both the countries.
The Prime Minister of Japan invited Dr. Rajeev Rai to a special dinner to understand his view point in the field of education.

Tuesday, August 9, 2011

Article by Rajeev Rai on Dakshin Bharat Rastramat
(09-08-2011)pge6


Wednesday, May 18, 2011

किसानों के साथ भेदभाव-आखिर क्यों

भट्टा-पारसोल आग में जल रहा है. बर्बर मायावती सरकार ने किसानों की आवाज पुलिसिया जुल्म के सहारे जिस तरह दबाने का प्रयास किया उससे टप्पल की याद फिर से ताजा हो आई जब आजादी के जश्न की पूर्व संध्या पर उत्तरप्रदेश की मायावती सरकार ने तीन किसानों को गोलियों से भून दिया दिया था। ये किसान अलीगढ़ जिले के टप्पल कस्बे में जे.पी समूह के हाईटेक सिटी से अपनी जमीन बचाने के लिए आन्दोलन कर रहे थे। लेकिन आजादी के दिन टप्पल में पिपली लाइव फिल्मी नहीं, उसका वास्तविक नजारा था। मायावती सरकार बिल्डरों के हाथ बिकी हुई है और निकम्मी सरकार किसानों का दमन कर अपना उल्लू सीधा करने में लगी है. राहुल गांधी भी किसानों के नाम पर नौटंकी करने में ही लगे हुए हैं. देश में हजारों स्थान पर किसान अपनी भूमि बचाने के लिए संघर्षरत है। देश की अदालतों में भुगतान एवं मुआवजे की दर को लेकर लाखों मुकदमे चल रहे हैं।

साम्यवादी चीन में भी 60 हजार किलोमीटर से भी लम्बा हाईवे बन चुका है, लेकिन एक भी किसान को गोली से नहीं मारी गई है। यहा सैकड़ों किलोमीटर में ही सैकड़ों किसान गोलियों से भून डाले गए हैं। सिंगूर, नन्दीग्राम, दादरी, गुड़गांव में विकास के नाम पर किसानों को लहूलुहान करने का ही काम किया है. मेरा सवाल यह है कि सरकार विकास के नाम पर और कितने किसानों की बलि लेगी-सरकार को इसका जवाब देना ही होगा.

आज देश की लगभग एक लाख हैक्टेयर जमीन 300 से अधिक सेज एवं अन्य लाभकारी परियोजनाओं के लिए देशी-विदेशी धनपतियों को स्थांनातरित कर दी गई है। गरीब किसानों की भूमि इन धनपतियों को स्थांनातरित होने में सरकारें बिचैलियों की भूमिकाए निभा रही है। सरकार सार्वजनिक उदेश्य से निजी जमीन के अधिग्रहण के सिद्धान्त से मुनाफे के लिए जमीन अधिग्रहण सिद्धान्त की और बढ़ रही है।
जमीन अधिग्रहण करते समय सबसे मूलभूत तथ्य को नजरअंदाज कर दिया जाता है. किसान चाहे दिल्ली का हो या बलिया का-उसका योगदान समान होता है. किसान की देषभक्ति यही है कि वह खूब अनाज पैदा करे. हमारे किसान जमकर अनाज पैदा भी करते हैं लेकिन फिर भी देष में सबसे खराब स्थिति उन्हीं की है. काॅरपोरेट भू-माफियाओं की नजरें कमजोर किसानों की जमीन पर है. फिर मुआवजा तय करते वक्त सरकार भेदभाव क्यों करती है. 1894 का जमीन-अधिग्रहण कानून भारतीयों का दमन करने के मकसद से अंग्रेजों ने बनाया था. लेकिन अंग्रेजों ने भी इस कानून का इतना दुरूपयोग नहीं किया जितना कि बर्बर और निकम्मी मायावती सरकार ने. होता यह है कि दिल्ली के नजदीक रहने वाले किसान मिले मुआवजे का सही तरीक से इस्तेमाल नहीं कर पाते और और दूरदराज के गांव के किसान को सरकार मुआवजे के नाम पर झुनझुना पकड़ा देती है. दोनो ही गलत है. गांव का जमींदार भी बड़े षहरों में आकर छोटी नौकरी करता है. उसकी सामाजिक हैसियत में काफी गिरावट आ जाती है. जिन किसानों की जमीन सरकार छीन लेती है वे भी नक्सलवाद का दामन थामकर बंदूक उठा लेते हैं.
सरकार को किसानों से जमीन लेते वक्त यह तय करना चाहिए कि जमीन किस मकसद से लिया जा रहा है. जमीन अधिग्रहण की न्यूनतम और अधिकतम मात्रा भी निष्चित होनी चाहिए. ग्रेटर नोएडा में फार्मूला-वन कार रेस के मैदान के लिए एक हजार एकड़ भूमि की आवश्यकता थी, दोगुनी भूमि कंपनी ने ले ली. 1950 के दशक में पश्चिम बंगाल सरकार ने हुगली जिले में जी.टी रोड़ और मेन ईस्टर्न लाइन के बीच महत्वपूर्ण स्थल पर 750 एकड़ जमीन बिरला समूह की आटोमोबाइल फैक्टरी के लिए ली। पिछले 50 वर्षों में वह समूह 300 एकड़ जमीन का ही उपयोग कर पाया, 450 एकड़ जमीन यो ही बेकार पड़ी रही। इतने बड़े रकबे की न तो कृषि के लिए इस्तेमाल हुई और न ही उद्योगों के लिए। इसे रोका जाना चाहिए.

एक बड़ा सवाल मजदूरों और दूसरे कामगारों का भी है जो किसान के खेत पर निर्भर करते हैं. पुनर्वास के लिए नीति बनाते वक्त उनके हितों का भी ख्याल रखा जाना चाहिए.
........................लेखक समाजवादी पार्टी के नेशनल सेक्रेटरी हैं

Sunday, March 20, 2011

कांगे्रसी टाईप के बजट से आम आदमी का कल्याण नहीं

मैं आपको पहले ही साफ कर देना चाहता हूं कि मैं कोई अर्थषास्त्री नहीं हूं मैं एक आम आदमी हूं और समाजवादी पार्टी के नेशनल सेक्रेटरी बनने के बाद से मेरी जनता के प्रति जिम्मेदारियां काफी बढ़ गई हैं. अभी हाल ही में अपने गृह-जिले बलिया में एक रैली में गया था. राजनेता के तौर पर आम आदमी से जुड़ने का मौका मिला. उसी दौरान नेशनल मीडिया में बजट-2011 की हलचल चल रही थी.

इसमें कोई शक नहीं कि देश के सामने इस वक्त गंभीर चुनौतियां हैं. मध्य-पूर्व का संकट जिस तरह से बढ़ रहा है और वहां अस्थिरता का माहौल है उसके बाद से कच्चे-तेल की कीमतें लगातार बढ़ रही है. ऐसे में देश के विकास को ब्रेक लगने का भय गहरा रहा है. तेल की कीमत किस तरह से हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती हैं यह बताने की आवष्यकता नहीं है. हम आवष्यकता का 70 फीसदी तेल अब भी आयात करते हैं. ऐसे में अगर तेल की कीमत 100 डाॅलर से पार करती है तो तेल आयात बिल में बेलगाम बढ़ोतरी होगी और बजट-घाटा बढ़ेगा ही.

सरकारी घाटा लगातार बढ़ रहा है. विनिवेश का कार्यक्रम ठप्प है. डेढ़ लाख करोड़ रूपये की सबसिडी दिए जाने के बाद भी गरीबों को ढेला नहीं मिलता. काले-धन और करप्शन पर भी जमकर हो-हल्ला हो रहा है.
ऐसे में प्रणब बाबू जैसे सक्षम और अनुभवी वित्त-मंत्री से काफी उम्मीदें थी. लेकिन मैं निराश हूं. वित्त-मंत्री ने बिलकुल कांग्रेसी टाईप बजट पेष किया है. समस्याओं से पार पाने और नया विकल्प पेश करने का विजन इस बजट में कहीं भी नहीं दिखता. उम्मीद थी कि प्रणब बाबू महंगाई से पार पाने के लिए ठोस योजना प्रस्तुत करेंगे लेकिन यह उम्मीद एकदम बेमानी साबित हुई है.

आने वाले समय में खाद्य-संकट को देखते हुए हर देश खाद्यान्न-नीति बनाने पर जोर दे रहा है. लेकिन इस तरह की कोई नीति या उसकी झलक इस बजट में मुझे तो कम से कम नहीं दिखी. सारा देश दूसरे हरित-क्रांति की उम्मीद लगाए बैठा है. लेकिन प्रणबदा ने इतिहास बनाने का मौका गंवा दिया. कुछेक कास्मेटिक घोषणाओं को छोड़कर ख्ती के लिए कोई ईमानदार प्रयास नहीं दिखा. यह ठीक है कि खेती के लिए एक लाख करोड़ रूपये का कर्ज देने की घोषणा की. लेकिन इससे गरीब किसानों का क्या फायदा होगा यह तो प्रणब बाबू ही बेहतर बता सकते हैं. कर्ज माफी का फायदा बड़े किसान हड़प कर गए और गरीब किसानों को उसका फायदा नहीं मिला. सिंचाई की सुविधा के विस्तार के लिए कोई योजना बजट में नहीं है. बेहतर खेती के लिए वित्त-मंत्री अब भी इन्द्र देव से प्रार्थना करते नजर आते हैं. अगर इन्द्र देवता ही समस्या दूर कर सकते हैं तो सरकार की क्या आवष्यकता है.
अब आते हैं महंगाई के मुद्दे पर. वित्त-मंत्री से उम्मीद थी कि कर में छूट देकर आम आदमी को राहत देंगे. कर में छूट मिला भी लेकिन इसका सांकेतिक महत्व ही ज्यादा है. इससे आम आदमी के बटुए में कितना ज्यादा पैसा आएगा वह प्रणब बाबू ही बेहतर बता सकते हैं.

सबसे हास्यास्पद प्रस्ताव तो सुपर सीनियर सिटीजेन श्रेणी बनाने का है. 80 साल से उपर के उम्र वाले लोगों के लिए 5 लाख रूपये तक की आय को करमुक्त कर दिया गया है. सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि जब देश की औसत आयु ही 64 साल है और 17 फीसदी आबादी 45 साल की उम्र में ही चल बसती है और 80 साल की उम्र तक षायद ही कोई जीवित रह पाता है तो ऐसे में उनके इस प्रस्ताव का फायदा कौन उठाएगा यह लाख टके का सवाल है.
हैरानी की बात तो यह है कि स्वास्थ्य पर जीडीपी का महज 0.5 फीसदी ही खर्च है. पहले माननीय वित्तमंत्री को यह स्वास्थ्य सुविधा बेहतर करने की कोषिष करनी चाहिए थी ताकि लोग कम से कम 80 से 90 साल तक तो जीवित रहे और उसके बाद कर में छूट मिलती तो मजा आ जाता. लेकिन स्वास्थ्य-सुविधाओं की हालत तो यह है कि सरकारी अस्पताल में सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ देते हैं और निजी अस्पताल में बिल वहन करने लायक पैसा उनके पास नहीं होता इसलिए दम तोड़ देते हैं. ऐसे में उनके इस कर में छूट का लाभ कौन उठाएगा यह तो वही बेहतर बता सकते हैं. बजट निराशाजनक है और आम आदमी इससे पूरी तरह से निराश
है.
........................लेखक समाजवादी पार्टी के नेशनल सेक्रेटरी हैं

Thursday, February 24, 2011

महंगाई का भस्मासुर

महंगाई आम आदमी से लेकर संप्रंग सरकार तक के लिए गले की हड्डी बन चुका है. महंगाई अब इस स्तर पर पहुंच चुकी है जहां से एक औसत भारतीय सीमित बजट में घर चलाने के लिए काफी मगजमारी करनी पड़ रही है. इतनी मगजममारी अगर प्रणब मुखर्जी या षरद पवार ने महंगाई नियंत्रण में की होती तो आम जनता इतनी बेहाल नहीं होती. सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि इसे नियंत्रित करने के लिए आखिर क्या किया जा रहा है. केन्द्र सरकार राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है. अर्थषास्त्री आपूर्ति में समस्या को वजह बता रहे हैं. उनके पास मांग-आपूर्ति के थोथे तर्क के अलावा कुछ भी कहने को बचा नहीं है. राजनेता एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. चैनल हल्ला मचा रहे हैं. लेकिन समस्या की तह तक कोई नहीं पहुंच रहा है.
मेरा मानना है कि कीमतों में बढ़ोतरी का आपूर्ति से कोई लेना-देना नहीं है. मसलन दाल का ही उदाहरण लीजिए. 2008 में दाल का उत्पाद 147.6 लाख टन था और यह 2009 में घटकर 146.8 लाख टन हो गया. इसका मतलब यह हुआ कि उत्पादन में महज 80 हजार टन की कमी हुई. मोटे तौर पर हम यह कह सकते हैं कि उत्पादन में अत्यंत मामूली कमी देखने को मिली है. कुछ जानकारों का मानना है कि दालों की मांग देष में 170 लाख टन है. हमने 2009 में 25 लाख टन दाल आयात कर मांग-आपूर्ति के अंतर को पाट दिया. इसके बाद भी कीमतों में बढ़ोतरी जारी रही. इसका मतलब यह हुआ कि असली वजह कुछ और ही है.
आज सोचने की बात यह है कि प्याज की कीमतों को लेकर इतना हो-हल्ला हो रहा है. अगर सरकार को पहले से यह मालूम था कि बारिष से प्याज का उत्पादन प्रभावित हुआ है तो पहले ही फौरी कार्रवाई करते हुए निर्यात पर रोक लगानी चाहिए थी. लेकिन निर्यात जारी रखा गया. दूसरी बात यह कि प्याज में जमाखोरी मुमकिन नहीं है क्योंकि इसे कोल्ड-स्टोर में लंबे वक्त तक नहीं रखा जा सकता. यह तीन-चार दिन में ही खराब होने लगता है. अगर बाहर ठेलेवाले या पटरी वाले 80 रूपये प्रतिकिलो बेच रहे हैं तो मंडी में यह 30 रूपये में उपलब्ध है. जाहिर है खुदरा विक्रेता मनमानी कर रहे हैं. वे बेलगाम हैं. एक और बात सोचने वाली बात है कि दिल्ली की आजादपुर मंडी ओर नासिक की प्याज मंडी में एक ही दर पर प्याज कैसे बिक सकता है? सुपर मार्केट और ख्ुाले बाजार की कीमतों में कोई अंतर नहीं है. जबकि उन्होंने कम कीमत पर सब्जी और फल उपलब्ध कराने के बड़े सब्जबाग दिखाए थे.
पहले निर्यात की खुली छूट देने के बाद पाकिस्तान से चीनी और प्याज का बार-बार आयात काना भी समझ से परे है. इस बात की जांच की जानी चाहिए. हमें इस बात पर षर्म आनी चाहिए कि हम प्याज के खातिर देष का सम्मान भी गिरवी रखने को तैयार हो जाते हैं. पाकिस्तान से आयात करने का मतलब ही है दुष्मन को मजबूत करना. इसका खराब असर आखिरकार हम पर ही पड़ेगा.
सरकार को बड़ी रीटेल कंपनियों को दाम में सीधे 20 फीसदी की कटौती करने का आदेष देना चाहिए. इससे खुले बाजार पर भी दबाव पड़ेगा और वे दाम कम करने को बाध्य होंगे. इसके अलावा थोक मंडियों में कुछ चुनिंदा लोगों को ही लाईसेंस मिले हुए हैं ओर वे कीमत में कृत्रिम उतार-चढ़ाव पैदा करते हैं. क्यों नहीं सरकार ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाईसेंस देती है ताकि आढ़तियों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा हो. रीटेल कंपनियां 300 से 400 प्रतिषत तक मुनाफा कमाने में लगी हुई हैं. इस पर नियंत्रण आवष्यक है. वायदा कारोबार पर भी रोक लगाया जाना चाहिए. यह सट्टेबाजी प्रोत्साहित करता है.
उधर विपक्ष इसे राजनीतिक मुद््दा बनाका सियासी फायदा उठाने की सेाच रहा है. उसे भी वास्तव में महंगाई कम करने की कोई फिक्र नहीं है. आखिरकार वायदा कारोबार को अनुमति तो राजग सरकार में दी गई थी. इस बात को राजग कैसे झुठला सकता है. संसद ठप्प करने से तो दाम कम होने से रहे.